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जल संरक्षण पर निबंध – Short and Long Essay on Save Water in Hindi | Save Water Essay in Hindi

Essay on save water in Hindi

हैलो दोस्तों स्वागत है आपका कैरियर जानकारी में। दोस्तों आज के ब्लॉग के जरिये मैं आपको बताने वाली हूँ , जल संरक्षण के बारे में। वर्तमान की स्थिति को देखते हुए पूरी दुनिया को जल संरक्षण के बारे में सजग हो जाना चाहिए। पूरे ब्रह्माण्ड में एक अपवाद के रुप में धरती पर जीवन चक्र को जारी रखने में जल मदद करता है। परंतु आज कल लोग जल को व्यर्थ में बहा रहे हैं। तथा आजकल बढ़ती जनसंख्या, बढ़ते उद्योग धंधे , वनों में विनाशकारी आग, पेडों का काटना , मृदा अपरदन तथा ग्लोबल वॉर्मिंग आदि के कारण जलवायु परिवर्तन हो रही है, जिसके कारण जल के स्तर में कमी आ रही है। तो दोस्तों अगर आप भी जल भविष्य और जल संरक्षण के बारे में जानना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़िये।

Save Water Essay in Hindi

Save Water Essay in Hindi

जल का प्रत्येक जीवधारी के लिए महत्व –

इस ब्रहांड में जल प्रत्येक जीवधारी के लिए प्रकति का अनमोल उपहार है। बिना जल के जीवन संभव नहीं है। इसलिए कहा जाता है कि ‘ जल ही जीवन है । ‘ हमारे पास पृथ्वी पर पानी की प्रचुरता है, लेकिन पृथ्वी पर पीने के पानी का प्रतिशत बहुत कम है। उन पानी का केवल 0.3% उपयोग करने योग्य है। बाकि जल खारा है, जो पीने योग्य नहीं है। पृथ्वी गृह पर यानि नीले गृह पर, हमें समुद्रों, महासागरों, नदियों, झीलों, तालाबों आदि में हर जगह पानी मिलता है, लेकिन हमें शुद्ध या रोगाणु मुक्त पानी की आवश्यकता होती है, जो इस पृथ्वी पर सीमित मात्रा में ही है। इसलिए पानी की हर एक बूंद को हमें सहेज कर रखना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के राष्ट्रीय जल मिशन के अंतर्गत वर्षा जल संरक्षण का आहावान ही पानी बचाने का एक मात्र रास्ता है। अर्थात मोदी जी ने जल संरक्षण के लिए ” कैच द रैन ” का मंत्र दिया है। वर्तमान जहाँ पानी के लिए हाय तौबा मची हो और दूसरी तरफ करोंड़ों लीटर पानी, जो प्रकति हर वर्ष इस देश को देती है, हम यूँ ही अपने सामने जाने देते हैं, तब ऐसे जल बचाने वाले नारे हमें वर्षा जल संरक्षण के लिए प्रेरित कर सकते हैं। फिर जहाँ पानी हर देश व हर घर का संकट बन रहा हो तो पानी की सारी आस व मेहनत आसमान पर ही टिकानी होगी। 22 March 2021 , अंतराष्ट्रीय जल दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी के वर्षा जल संरक्षण के लिए ‘ कैच द रैन ‘ का नारा आज इस देश व दुनिया की पहली आवश्यकता है। वर्षा की हर एक बूंद को समेट लेने में ही हमारा भविष्य निर्भर करता हैआऔर वह इसलिए की पानी का दूसरा और कोई विकल्प हमारे पास नहीं है। आज की परिस्थितियो में यही तत्काल रूप से संभव है कि जैसे भी हो, हम वर्षा जल को एकत्र करें या बहने से रोकें।

प्रकति के प्रसाद के रूप में जल –

दुनिया में वर्षा का पानी ही सभी तरह के पानी का स्त्रोत है।जहाँ भी पानी है वो कहीं न कहीं वर्षा जल से ही जुड़ा है। चाहें मैदानी तालाब, कुएँ हों या फिर पहाड़ी धारे या हिमखंड, सबकि जड़ें मानसून से सिचतीं हैं। वर्षा जल ही जलागमों के जलभिद् को सींच कर नदियाँ बनाता है। चाहें पहाड़ हो या मैदान, सभी तरह के जलाग्रह इसी कारण मिटते सिमटते दिखाई देते हैं, क्योंकि उनके वर्षा जल संग्रह क्षमताएं निम्न हो गई हैं या फिर समाप्त हो गई हैं। कारण साफ है जलग्रह के संग्रह क्षेत्र या तो अन्य उपयोगों में आ गए या फिर वन विहीन हो गए।

वन व वर्षा का अटूट रिश्ता होता है जिसके टूटने से जल संग्रह क्षेत्र भूमिगत जल क्षेत्रों को सींच नहीं पाते और गर्मियों में सूखा व मानसून में बाढ़ जैसी परिस्थितियाँ पैदा कर देते हैं।प्रकति यही बताती है कि इसके विज्ञान व प्रबंधन को समझ कर जल संग्रह के परंपरागत तौर तरीके ही जलग्रहों में पानी की वापसी सुनिश्चित कर सकते हैं। ये चिंता इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि अब वर्ष 1950 की तुलना में 24 lakh तालाबों में पांच लाख ही बचे हैं। इतना ही नहीं, एक – एक करके सभी वर्षाजनित नदियाँ अपना पानी या अपना अस्तित्व पूरी तरह से खो चुकी हैं या फिर खोने की कगार पर हैं। पानी की कमी ने कुओं को भी संकट मे डाला है।

कृषि व्यवस्था में जल का अहम योगदान –

जल के बिना कृषि की कल्पना अधूरी है। और भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर अत्यधिक निर्भर है। जल और कृषि का तालमेल ऐसा है कि अगर थोड़ा भी बिगड़े तो दुनिया की आधी आबादी सीधे प्रभावित हो जाती है। एशिया में भारत और खासतौर से उप – अफ्रीकी देशों में जल और कृषि का तालमेल बिगड़ने से देशों का आर्थिक पहिया डगमगा जाता है और उसका खामियाजा सबसे पहले श्रमिकों को उठाना पड़ता है। इनमें महिलाओं की संख्या भी आधी होती है। दुनियाभर के कई देशों में 76.7 करोङ लोग भयंकर गरीबी में हैं, जो कृषि पर ही पूर्णत: निर्भर हैं ।


विश्व जल रिपोर्ट – 2021 पर संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में विश्व बैंक का हवाला देकर कहा गया है कि 30 yrs का विश्लेषण यह बताता है कि भारत में बारिश में गड़बड़ी या वर्षा के झटके सीधे तौर पर श्रमिकों के मेहनताने पर चोट पहुंचाते हैं। अधिक समय तक रहने वालासूखा बेरोजगारी और पलायन की वजह बनता है। पानी के सुधार से खेती का दायरा बढ़ाया जा सकता है। और फसलों को विफल होने से बचाया जा सकता है। साथ ही कई तरह की फसलें उगाई जा सकती हैं।

वर्षा जल संग्रहण कैसे करें –

वर्तमान समय में जल संकट के बादल छाए हुए हैं। भारत में भू जल प्रणालियों के प्रबंधन पर लंबे समय से ध्यान नहीं दिया गया है। निसन्देह, वर्षाजल एक अनमोल प्राकृतिक उपहार है जो प्रतिवर्ष लगभग पूरी पृथ्वी को बिना किसी भेदभाव के मिलता रहता है। परन्तु समुचित प्रबन्धन के अभाव में वर्षाजल व्यर्थ में बहता हुआ नदी, नालों से होता हुआ समुद्र के खारे पानी में मिलकर खारा बन जाता है। अतः वर्तमान जल संकट को दूर करने के लिये वर्षाजल संचय ही एक मात्र विकल्प है। यदि वर्षाजल के संग्रहण की समुचित व्यवस्था हो तो न केवल जल संकट से जूझते शहर अपनी तत्कालीन ज़रूरतों के लिये पानी जुटा पाएँगे बल्कि इससे भूजल भी रिचार्ज हो सकेगा। आज अच्‍छी गुणवत्‍ता वाले पानी की कमी चिंता का एक बड़ा कारण बन गई है। हालांकि, शुद्ध और अच्‍छी गुणवत्‍ता वाला वर्षा जल जल्‍द ही बह जाता है।

वर्षा जल को संचित करने के निम्नलिखित उपाय दिये गये हैं –

तालाबों या पोखरों का प्रयोग –

सतह से बारिश के पानी को इकट्‌ठा करना बहुत ही असरदार और पारंपरिक तकनीक है। इससे छोटे तालाबों, भूमिगत टैंकों, बांध आदि के इस्तेमाल से जल को संचय किया जा सकता है। बारिश के पानी को पोखर या जलाशय में संग्रह किया जाये तो गाँव, कस्बों के लोगों के लिए पशु पक्षियों तथा कृषि के लिए अत्यंत लाभदायक है, जो बाद में जल के संकट को दूर करता है।

बांध बनाकर जल संग्रहण करना –

नदियों पर बड़े – बड़े बाँध बनाकर हम पानी को एकत्र कर सकते हैं, और अपनी आवश्यकतानुसार प्रयोग कर सकते हैं।

छत जल संचयन प्रणाली –

बरसात के मौसम में जब छतों पर वर्षा का पानी भर जाता है , तो उस पानी को हमें बड़े – बड़े टैंकरों व टंकियों में भर लेना चाहिए। उसके बाद उस पानी को रासायनिक प्रकिया द्वारा उस जल को शुद्ध कर लेना चाहिए। फिर उस पानी को अपने प्रयोग में ले लेना चाहिए या जहाँ जल की समस्या हो वहाँ उस पानी को भिजवा देना चाहिए।

भूमिगत जल का प्रयोग –

बारिश आने से पहले हमें जमीन पर बड़े – बड़े गड्ढे खोद लेने चाहिये। जब बारिश हो तब उनगहरे गड्डों में वर्षा का जल इकट्ठा हो जाये तब उसे कंकण, बालू और मिट्टी आदि से ढक देना चाहिए। यह वर्षा का जल भूमिगत जल हो जायेगा। ऐसा करने से आसपास के हैंडपंपों में कभी पानी की कमी नहीं होगी। और जल संकट का खतरा हमारे ऊपर नही मंडरायेगा ।

निष्कर्ष –

प्राकृतिक जल प्रबंधन की ही समझ पानी के संकट से मुक्त कर सकती हैं। वर्षा, प्रकति व परंपरा के समन्व्य से ही जल संबंधी समस्या के सारे समाधान निहित हैं। धरती पर बारिश की हर बूंद लोगों के लिये भगवान के आर्शीवाद के समान है। परंतु जल का दुर्पयोग बहुत ही तीव्र गति से हो रहा है। हमने नदियों, समुद्रों को प्रदूषित किया है और भूमिगत जल के स्तर को भी बिगाड़ दिया है। सभी को पानी बचाने की दिशा में अपना योगदान देना चाहिए। पानी के बिना पूरा संसार जीवित नहीं रह पायेगा और जल्द ही हमारे पास बंजर धरती होगी। धरती माता को बचाने के लिए पानी को जगाओ और बचाओ ।

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