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टी.बी. (ट्यूबरक्लोसिस) बीमारी क्या है ? – शरीर में क्या संकेत व लक्षण | Tuberculosis kya hota hai – TB Kya Hai

What is tuberculosis ? Causes, symptoms, prevention and Reasons explain in hindi :-

टीबी क्या है ?

टीबी अर्थात ट्यूबरक्लोसिस (यक्ष्मा,तपेदिक ,क्षय रोग) एक ऐसी संक्रामक बीमारी है जो सीधे फेफड़ों पर प्रभाव डालती है। तथा इसके अलावा शरीर के कई भागों पर भी प्रभावित होती है। यह रोग कीटाणुओं द्वारा होता है। तपेदिक बीमारी माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के द्वारा फैलती है। यह जीवाणु मनुष्य के शरीर के उन भागों में बढ़ता है जहाँ खून और ऑक्सीजन होता है। इसलिए टीबी ज्यादातर फेफड़ों में होता है। इस कारण इसे पल्मोनरी टीबी भी कहते हैं। टीबी फेफड़ों के अलावा हड्डियों, हड्डियों के जोड़, लीवर, किडनी, गला , लिम्फ ग्रंथियाँ, आंत, पेट, मूत्राशय , प्रजनन तंत्र के अंग आदि शरीर के कई भागों में टीबी हमला कर सकती है।

TB Kya Hai

पूरी दुनिया में टीबी की वजह से लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती है । विश्वभर में भारत में सबसे ज्यादा टीबी के मरीजों के मामले दर्ज किये जाते हैं । भारत में लगभग 27.9 लोग टी.बी के मरीज हैं, जिनमें से 4.23 लोगों की मौत सही इलाज न मिलने की वजह से हो जाती है। ये आकंडें टी.बी की गंभीर स्थिति को बयां करने के लिए काफी हैं लेकिन, इसके बावजूद यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोगों में इस बीमारी को लेकर काफी सारी गलतफहमियां हैं।

टीबी के संकेत व लक्षण (symptoms of T.B.) :-

टीबी सामान्यत: बहुत ही कम उम्र वाले बच्चों में या उम्रदराज ( वृद्ध ) व्यक्तियों में होता है। बच्चों और वृद्धों में अगर ये लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डॉक्टर की परामर्श लें।

खांसी आना

टीबी अधिकतर फेफड़ों को प्रभावित करती है, इसलिए शुरुआती लक्षण खांसी आना है। पहले तो सूखी खांसी आती है लेकिन बाद में खांसी के साथ बलगम और खून भी आने लगता है। दो हफ्तों या उससे ज्यादा खांसी आए तो टीबी की जांच करा लेनी चाहिए।

बुखार आना

टीबी के कीटाणु व्यक्ति के फेफड़ों से शरीर के अन्य अंगों में बहुत जल्दी पहुँच जाते हैं। इसके कारण व्यक्ति में हल्का बुखार हमेशा बना रहता है। रात को सोते समय व्यक्ति को पसीना आने लगता है।

वजन घटना

टीबी के मरीज के व्यक्ति का इम्यूनी सिस्टम बहुत कमजोर हो जाता है इसलिए वह हमेशा थका थका महसूस होता है। और बीमारी से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए उसका वजन घटने लगता है।

सांस लेने में परेशानी

टीबी हो जाने पर खांसी आती है, जिसके कारण सांस लेने में परेशानी होती है। अधिक खांसी आने से सांस भी फूलने लगती है।

पसीना आना

पसीना आना टीबी होने का लक्षण है। मरीज को रात में सोते समय पसीना आता है। वहीं, मौसम चाहे जैसा भी हो रात को पसीना आता है। टीबी के मरीज को अधिक ठंड होने के बावजूद भी पसीना आता है।

टीबी एक ऐसी बीमारी है जो कि हवा के जरिए एक से दूसरे इंसान में फैलती है। टीबी के मरीज के खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदें इन्हें फैलाती हैं। फेफड़ों के अलावा दूसरी कोई टीबी एक से दूसरे में नहीं फैलती। टीबी खतरनाक इसलिए है क्योंकि यह शरीर के जिस हिस्से में होती है, सही इलाज न हो तो उसे बेकार कर देती है। इसलिए टीबी के आसार नजर आने पर जांच करानी चाहिए।

टीबी के प्रकार :-

टीबी दो प्रकार की होती है –

  • (1) पल्मोनरी टीबी pulmonary Tuberculosis
  • (2) एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (Extra pulmonary tuberculosis) –

पल्मोनरी टीबी :-

यदि टीबी शरीर के आंतरिक भाग ( फेफड़ों में) में प्रभावित करती है और इस स्थिति में टीबी को फुफ्फुसीय टीबी या प्लमोनरी टीबी कहा जाता है। प्लमोनरी टीबी से प्रभावित व्यक्ति को लगातार खांसी तीन सप्ताह या उससे अधिक समय तक बनी रहती है। इसके अलावा उसे खूनी खाँसी, कफ जमना, छाती में दर्द व सांस लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है।

एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी :-

यदि टीबी फेफड़े के बाहर हो तो उसे एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी कहा जाता है। इस प्रकार की टीबी में हडि्डयां, किडनी और लिम्फ नोड आदि प्रभावित होते हैं। कुछ मामलों में व्यक्ति को प्लमोनरी टीबी के साथ−साथ एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी भी हो सकती है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब संक्रमण फेफड़ों से बाहर फैल जाता है और शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करने लगता है। इस प्रकार व्यक्ति फेफड़ों के टीबी के साथ−साथ अन्य अंगों के टीबी से भी ग्रस्त हो जाता है। यह स्थिति बेहद भयावह होती है और इस स्थिति में रोगी की जान बचा पाना काफी कठिन हो जाता है।

बचाव (precautions) :-

  (1) बच्चों को जन्म से एक माह के अंदर टीबी का टीका अवश्य लगवायें। क्षय रोग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से शिशुओं के बैसिलस कैल्मेट-ग्यूरिन (बीसीजी) का टीकाकरण कराना चाहिए। बच्चों में यह 20 से ज्यादा संक्रमण होने का जोखिम कम करता है।

(2) टीबी रोग से संक्रमित रोगी को खाँसते वक्त मुँह पर कपड़ा रखना चाहिए, और भीड़-भाड़ वाली जगह पर या बाहर कहीं भी नहीं थूकना चाहिए।

(3) सक्रिय मामलों के पता लगने पर उनका उचित उपचार किया जाना चाहिए। टीबी रोग का उपचार जितना जल्दी शुरू होगा उतनी जल्दी ही रोग से छुटकारा मिलेगा।

(4) साफ-सफाई के ध्यान रखने के साथ-साथ कुछ बातों का ध्यान रखने से भी टीबी के संक्रमण से बचा जा सकता है।

मरीज को हवादार और अच्छी रोशनी वाले कमरे में रहने की सलाह दी जाती है। कमरे में ताजा हवा आने दें और पंखा चलाकर खिड़कियां खोल दें, ताकि बैक्टीरिया बाहर निकल सके।

(6) टीबी के मरीज को हर समय मास्क पहनकर रखना चाहिए। मास्क उपलब्ध न होने पर हर बार खांसने या छींकने से पहले मुंह को नैपकिन से अच्छी तरह से ढक लेना चाहिए। बाद में इस नैपकिन को कवरवाले डस्टबिन में फेंक दें। 

(7) ताजे फल, सब्जी और कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, फैट युक्त आहार का सेवन कर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। अगर व्यक्ति की रोक प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी तो भी टीबी रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है।

टीबी का उपचार :-

ब्लड टेस्ट कराना- यह टी.बी का इलाज करने का सबसे आसान तरीका है, जिसमें व्यक्ति का ब्लड टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट के द्वारा इस बात का पता लगया जाता है कि किसी व्यक्ति के शरीर में टी.बी किस स्तर तक बढ़ गई है।

(2) टी.बी. के उपचार की शुरुआत सीने का एक्स-रे लेकर तथा थूक या बलगम की लेबोरेटरी जांच कर की जाती है।

(3) इस रोग की दवा लेने में अनियमितता बरतने पर, इसके बैक्टीरिया में दवाई के प्रति प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न हो जाती है। इससे बैक्टीरियाओं पर फिर दवा का असर नहीं होता। यह स्थिति रोगी के लिए खतरनाक होती है। एंटीबायोटिक्स ज्यादा प्रकार की देने का कारण भी यही है कि जीवाणुओं में प्रतिरोध क्षमता पैदा न हो जाए।

(4) टीबी की रोकथाम के लिए मरीज के परिवारजनों को भी दवा दी जाती है, ताकि मरीज का इन्फेक्शन बाकी सदस्यों को न लगे जैसे पत्नी, बच्चे व बुजुर्ग अदि। इसके लिए उन्हें आइसोनेक्स की गोली तीन माह तक दी जाती है।

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