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ध्वनि प्रदूषण किसे कहते हैं ? ध्वनि प्रदूषण के कारण, प्रभाव तथा रोकने के उपाय | Sound Pollution Kya Hai – Sound Pollution Essay in Hindi

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What is sound pollution ? Effect of sound pollution on explain in hindi

Hello दोस्तों careerjankari.in में आपका स्वागत है । तो आज हम बात करने जा रहे हैं ध्वनि प्रदूषण अर्थात Noise pollution की । इस टॉपिक के माध्यम से हम आपको बताना चाहेंगे कि हमारे आसपास के वातावरण में मानवजनित शोर – शराबा अधिक होने के कारण हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। तो आइये दोस्तों आज के इस ब्लॉग में Essay on noise pollution in hindi की विस्तार रूप से चर्चा की गई है।

Sound pollution ( Noise Pollution) Essay in Hindi

Sound Pollution Essay in Hindi

ध्वनि प्रदूषण किसे कहते हैं ? (What’s sound pollution?)

कई प्रकार के प्रदूषणों में ध्वनि भी एक प्रकार का प्रदूषण है। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक है। जो वातावरण में ध्वनि प्रदूषण तेज वांछित आवाज के कारण होता है। यह मानव जनित प्रदूषण है। इसने पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित किया है। आज के आधुनिक युग में मोटर गाड़ियों, स्वचालित वाहनों, लाउडस्पीकरों,कल-कारखानों एवं मशीनों का उपयोग काफी अधिक होने लगा है। जिनसे निकलने वाली आवाज हमें परेशान करने के साथ साथ हमारे स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालती है जिसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। ध्वनि प्रदूषण की ओर लोगों का कम ही ध्यान जाता है लेकिन ध्वनी प्रदूषण हमें कई तरह से नुकसान करता है। इसलिए ध्वनि प्रदूषण को धीमी मृत्यु कहा जाता है।

ध्वनि प्रदूषण आधुनिक जीवन और बढ़ते हुये औद्योगिकीकरण व शहरीकरण का भयानक तौहफा है। यदि इसे रोकने के लिये नियमित और कठोर कदम नहीं उठाये गये तो ये भविष्य की पीढियों के लिये बहुत गंभीर समस्या बन जायेगा। वातावरण में अनिच्छित आवाज स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है। हालांकि यह भारत में बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय मुद्दा रहा है जिसे हल करने के लिए एक उचित ध्यान देने की आवश्यकता है।

ध्वनि प्रदूषण के कारण ( Causes of sound pollution) :-

ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण में अवांछित ध्वनि के उच्च स्तर के कारण होता है जो तनाव का कारण बनता है। आज शोरगुल के कई स्त्रोत हो जाने से ये हमारे मुख्य चिंता का विषय बन गया है. इसमें परिवहन प्रणालियों में ट्रक, बसों, ऑटो, बाइक, वैयक्तिक कार ,क्लब, पार्टी, बार, डिस्को ,कारखानों और उद्योगों में प्रयोग होने वाले अन्य उपकरण कम्प्रेशर, जेनरेटर आदि बड़े यंत्र शामिल होते हैं उच्च स्तर का शोर उत्पन्न करते हैं। घर बनाने के लिए आजकल लगातार कंस्ट्रक्शन का काम चलता ही रहता है. विभिन्न निर्माण कार्यों में प्रयुक्त विभिन्न मशीनों और औजारों के प्रयोग से भी फलस्वरूप ध्वनि प्रदूषण बढ़ा है।

(1) कारखानों से निकलता उच्च स्तर का शोर :-

अधिकतर सभी औद्योगिक क्षेत्र ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित हैं कल-कारखानों में चलने वाली मशीनों से उत्पन्न आवाज/गड़गड़ाहट इसका प्रमुख कारण है। ताप विद्युत गृहों में लगे ब्यायलर, टरबाइन काफी शोर उत्पन्न करते हैं। शोर के औद्योगिक स्रोतों में विभिन्न उद्योगों में उच्च गति और उच्च स्तर की शोर तीव्रता पर काम करने वाली उच्च तकनीकों की बड़ी मशीनों का उपयोग शामिल है।

(2) स्वचलित वाहनों के कारण :-

परिवहन के सभी साधन कम या अधिक मात्रा में ध्वनि उत्पन्न करते हैं। इनसे होने वाला प्रदूषण बहुत अधिक क्षेत्र में होता है। इससे ध्वनि प्रदूषण के साथ वायु प्रदूषण की कल्पना स्वतः की जा सकती है। चलती हुई सड़कों पर उच्च स्तर पर हॉर्न या सायरन बजाना तथा इंजन व मशीनों से लगातार आवाज आना।

(3) जेट विमान , हवाई जहाज , राकेट तथा सागरों व महासागरों में पनडुब्बी के परीक्षण के कारण:-

जल जानवर भी समुद्र में पनडुब्बियों और बड़े जहाजों के शोर से उत्पन्न प्रदूषण से प्रभावित होते हैं। शोर का उच्च स्तर भारी उपद्रव, चोटों, शारीरिक आघात, मस्तिष्क के चारों ओर रक्तस्राव, अंगों में बड़े बुलबुले और यहां तक ​​कि समुद्री जानवरों के लिए विशेष रूप से व्हेल और डॉल्फ़िन की मृत्यु का कारण बनता है क्योंकि वे अपनी सुनने की क्षमता का उपयोग करते हैं, भोजन पाते हैं, बचाव करते हैं और पानी में रहते हैं। । पानी में शोर का स्रोत नौसेना पनडुब्बी का सोनार है जिसे लगभग 300 मील दूर महसूस किया जा सकता है। तथा आकाश में राकेट, हवाई जहाज और जेट विमान उडाने से हवा तो दूषित होती है उसके साथ मासूम पक्षी उनकी आवाजे तथा हवा को सहन नहीं कर पाते हैं।

(4) मनोरंजन तथा उत्सवों तथा सामाजिक कार्यक्रम में ध्वनि यंत्र के साधनों के प्रयोग के कारण :-

हमारे देश में विभिन्न त्योहारों, उत्सवों, मेंलों, सांस्कृतिक/वैवाहिक समारोहों में आतिशबाजी एक आम बात है। इन आतिशबाजियों से वायु प्रदूषण तो होता ही है साथ ही ध्वनि तरंगों की तीव्रता भी इतनी अधिक होती है, जो ध्वनि प्रदूषण जैसी समस्या को जन्म देती है तथा मनुष्य अपने मनोरंजन के लिए टी.वी., रेडियो, टेपरिकॉर्डर, म्यूजिक सिस्टम (डी.जे.) जैसे साधनों से मनोरंजन करता है परन्तु इनसे उत्पन्न तीव्र ध्वनि शोर का कारण बन जाती है. विवाह, धार्मिक आयोजनों, मेंलों, पार्टियों में लाऊड स्पीकर का प्रयोग और डी.जे. के चलन भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है। विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक रैलियों श्रमिक संगठनों की रैलियों का आयोजन इत्यादि अवसरों पर एकत्रित जनसमूहों के वार्तालाप से भी ध्वनि तरंग तीव्रता अपेक्षाकृत अधिक होती है. इसी प्रकार प्रशासनिक कार्यालयों, स्कूलों, कालेजों, बस स्टैण्डों, रेलवे स्टेशनों पर भी विशाल जनसंख्या के शोरगुल के फलस्वरूप भी ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है।

ध्वनि प्रदूषण से मानव तथा जानवरों पर पड़ने वाले प्रभाव (Effect of sound pollution on human and animal health) :-

उच्च स्तर के शोर से सामान्य व्यक्ति की ठीक से सुनने की क्षमता का नुकसान होता है। शोर का उच्च स्तर धीरे-धीरे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और धीमा जहर के रूप में कार्य करता है। यह वन्यजीवों, पौधों के जीवन और मनुष्यों को बेहद प्रभावित करता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण होने वाली सामान्य समस्याएं तनाव से संबंधित बीमारियां, चिंता, संचार समस्याएं, भाषण हस्तक्षेप, सुनवाई हानि, खो उत्पादकता, नींद में व्यवधान, थकान, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, घबराहट, कमजोरी, ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता को कम करती हैं जो हमारे शरीर को बनाए रखने के लिए प्राप्त होती हैं।लय, आदि यह लंबे समय तक सुनने की क्षमता में धीरे-धीरे कमी लाता है। उच्च स्तर की ध्वनि के लगातार संपर्क से ईयरड्रम को स्थायी नुकसान होता है।

आजकल हम अपने रोजमर्रा के जीवन में जो आवाजें अपने शौक जैसे तेज संगीत, टेलीविजन का अनावश्यक उपयोग, फोन, ट्रैफिक, डॉग बार्किंग और आदि शोर पैदा करने वाले स्रोत शहरी संस्कृति का हिस्सा बन गए हैं और साथ ही सबसे ज्यादा परेशान करने वाली चीजें सिरदर्द, नींद की गड़बड़ी, तनाव, आदि हैं। । जीवन की प्राकृतिक लय में गड़बड़ी पैदा करने वाली चीजों को खतरनाक प्रदूषक कहा जाता है। ध्वनि प्रदूषण के निम्नलिखित कारण हैं –

दिन-प्रतिदिन बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से इंसान के काम करने की क्षमता और गुणवत्ता में कमी आ रही है। शोर प्रदूषण एकाग्रता स्तर को कम करता है क्योंकि उच्च स्तर के शोर के कारण थकान होती है। लगातार शोर खून में कोलस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ा देता है जो कि रक्त नलियां को सिकोड़ देता है जिससे हृदय रोगों की संभावनायें बढ़ जाती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि 100 डेसीबल से अधिक की ध्वनि हमारी श्रवण शक्ति को प्रभावित करती है। मनुष्य को यूरोटिक बनाती है। बहुत अधिक शोरगुल मानव का खून गाढ़ा कर सकता है जिसके कारण हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। दूसरी तरफ खून का दबाव बढ़ सकता है। जिसके कारण हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत भी हो सकती है। बहुत तेज ध्वनि कान के पर्दों को हानि पहुँचा सकती है। कान के अन्दर जो हेयर-सेल्स (Hearing and Hair Cells) होते हैं वो पूरी तरह खत्म हो सकते हैं और कान से सुनाई देना बन्द हो सकता है। ध्वनि से दिल की धड़कन कम हो जाती है और ब्लड प्रेशर की शिकायत हो सकती है।

ध्वनि प्रदूषण पशुओं के लिये भी खतरनाक साबित होता है। अधिक ध्वनि प्रदूषण के कारण जानवरों के प्राकृतिक रहन-सहन में भी बाधा उत्पन्न होती है। उनके खाने-पीने, आने-जाने और उनकी प्रजनन क्षमता और आदत में बदलाव आने लगता है। जानवर अपने दिमाग पर नियंत्रण खो देते हैं और अधिक खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि उच्च स्तर का शोर उनके तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। सेनाओं के अभ्यास से उत्पन्न होने वाले शोर से चोंचदार व्हेलों की प्रजाति अब लुप्त होने के कगार पर है। पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया नहीं हो पाती है जिसका सीधा असर वायुमंडल में ऑक्सीजन के प्रतिशत पर पड़ रहा है।

ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपाय :-

विभिन्न क्षेत्रों में सड़कों के किनारे हरे वृक्षों की कतार खड़ी करके ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है क्योंकि हरे पौधे ध्वनि की तीव्रता को 10 से 15 डी.वी. तक कम कर सकते हैं। महानगरीय क्षेत्रों में हरित वनस्पतियों की पट्टी विकसित की जा सकती है। उद्योगों को आबादी से दूर स्थापित कर सकते हैं। अर्थात हवाई अड्डो , रेलवे स्टेशनों और कारखानों का निर्माण बस्तियों से दूर किया जाना चाहिए। .ख़राब इंजनो वाले वाहनों पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। मशीनों की समय समय पर सफाई करके , तेल और ग्रीस देकर शोर कम किया जा सकता है। ख़राब पुर्जो को बदला जाना चाहिए। जहाँ तक संभव हो कारखानों में प्लास्टिक फर्श लगाना चाहिए।

सरकार और जनता के संयुक्त प्रयासों से ध्वनि तथा शोर की तीव्रता को कम करके हम ध्वनि प्रदुषण से निजात पा सकते हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 45 डेसीबल की ध्वनि को, शहरों के लिए आदर्श माना है। लेकिन बड़े शहरों में ध्वनि की माप 90 डेसीबल से अधिक हो जाती है।एक अलग अध्यययन के अनुसार, वाहनों से होने वाला प्रदूषण 8 प्रतिशत बढ़ा है जबकि उद्योगों से बढ़ने वाला प्रदूषण चौगुना हो गया है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1996 के तहत शोर प्रदूषण नियंत्रण नियम 2000 में ध्वनि प्रदूषण की बढ़ती समस्या को नियंत्रित करना शामिल है।

निष्कर्ष ( Conclusion) :-

ध्वनि प्रदूषण को पर्यावरण प्रदूषण के रुप में पर्यावरण को बड़े स्तर पर विभिन्न स्त्रोतों के माध्यम से हानि पहुंचाने वाले तत्वों के रुप में माना जाता है।  देश के बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के घातक प्रभावों को रोकने और उन्हें कम करने की दिशा में जनचेतना जागृत की जाए तभी इस अदृश्य शत्रु से छुटकारा संभव हो सकता है। इस शुभ कार्य में समाचार पत्र पत्रिकायें , रेडियो तथा टेलीविजन की अहम भूमिका हो सकती है। हमारी आने वाली पीढियों को शांत वातावरण देने के लिए हमें इस प्रबल रोग से अपने आप को बचाना होगा , अन्यथा विश्व शारीरिक दृष्टि से दुर्बल हो जायेगा। इस अनदेखे खतरे से बचने का प्रयास व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर किया जाना चाहिए।

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