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नक्सलवाद पर निबंध – Naxalism in India Essay In Hindi | नक्सलवाद का बढ़ता प्रभाव पर निबंध | Essay on Increasing Effect of Naxalites in Hindi

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Naxalism in India essay in Hindi

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका कैरियर जानकारी में। दोस्तों आज के इस ब्लॉग के जरिये हम आपको बताने वाले हैं नक्सलवाद के बारे में। नक्सलवाद को आतंकवाद के छोटे रूप में देखा जा रहा है। नक्सलवाद देश के अंदर ही पनपता है। नक्सलवाद समस्या भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है। नक्सलवाद के नाम पर घरेलू आतंकवाद संगठन भी शामिल होते हैं। तो दोस्तों यदि आप भी नक्सलवाद के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़िये, क्योंकि परीक्षा में इस पर निबंध भी लिखने के लिए आता है।

नक्सलवाद क्या है ? (What is Naxalism in Hindi )

नक्सलवाद समस्या भारत में गंभीर रूप धारण कर चुकी है। नक्सलवाद से जुड़े संगठन आम जनता या सेना के ऊपर अचानक आक्रमण करती है, और इसक जरिये सरकार पर अपनी शर्तें मनवाने के लिए बाध्य करती है। शासन और विधिक व्यवस्था की अनदेखी की वजह से आज नक्सलवाद एक खतरनाक रूप ले चुका है। एक सर्वे के अनुसार अनुमान लगाया गया है कि लगभग देश के 20 – 21 राज्यों के कुछ क्षेत्रों में नक्सली अपना संगठन का विस्तार बना चुके हैं। इसमें बाहरी आतंकवाद भी अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी निभाता है।

Naxalism in India Essay In Hindi

भारत के कई राज्यों में नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों को लाल गलियारे यानि रेड कॉरिडोर के नाम से जाना जाता है। नक्सलवादी लोग अपने संगठनों के साथ मिलकर अपहरण, हत्या, डकैती,लूटपाट करना, निर्दोषों की बेरहमी से हत्या कर देना, अवैध वसूली, फिरौती आदि गतिविधियां आये दिन करते रहते हैं। नक्सलवादी संगठन हिंसा में विश्वास करते हैं। वे सोचते हैं कि सरकार को मुँह से बोली हुई बात समझ नहीं आती इसलिए उनको बंदूक की गोली से भाषा को समझाना पड़ता है

नक्सलवाद का उदय –

नक्सलवाद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आंदोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ।नक्सल शब्द की उत्पति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है। जहाँ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारूमजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 में सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की। मजूमदार चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से एक थे। और उनका मानना था कि भारतीय मजदूरों और किसानों की दुर्दशा के लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन तंत्र स्थापित हुआ है। फलस्वरूप कृषि पर उनका वर्चस्व स्थापित हो गया है। इस न्याय हीन दमन कारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है।

नक्सलवादी मानते हैं कि उनका बड़े तबकों यानि भूपतियों और साधनसंपन लोग मिलकर गरीबों को सताते हैं। बंधुआ मजदूर , कर्जदार बना कर कई प्रकार से शोषण करते है। उनके घर, खेतों में वंशानुगत कार्य करते हैं नौकर की तरह। मजदूरी बहुत कम देते हैं। बच्चों और स्त्रियों को भी कई तरह का अपमान सहना पड़ता है। सरकारी व्यवस्था सोई हुई है उसे हमारे साथ हो रहे कुकृत्य से कोई मतलब नहीं है। अर्थात सरकार भी इस दमन से मुक्ति दिलाने में समर्थ नहीं है। इसलिए अब वह हो रहे उनके ऊपर शोषण को वे सहेंगे नही इसका जवाब देंगे। और उनका मानना था कि अन्याय और शोषण, दमन का मुकाबला हिंसक प्रतिकार व हथियार से ही दिया जा सकता है। नक्सलवाद में किसान, मजदूर और आदिवासी सम्मलित हुए थे।

नक्सलवादी आंदोलन की शुरुआत –

1967 में नक्सलवादियों ने कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों की एक अखिल भारतीय समन्व्य समिति बनाई। इन विद्रोहियों ने औपचारिक तौर पर स्वयं को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अलग कर लिया और सरकार के खिलाफ भूमिगत होकर सशस्त्र लडाई छेड़ दी। 1971 के आंतरिक विद्रोह और मजूमदार की मृत्यु के बाद यह आंदोलन एकाधिक शाखाओं में विभक्त होकर अपने लक्ष्य और विचारधारा से विचलित हो गया।


आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टी बन गए हैं और संसदीय चुनाव में भी भाग लेते हैं।लेकिन बहुत से संगठन अब भी छदम लडाई में लगे हुए हैं।नक्सलवाद के विचाराधात्मक विचलन की सबसे बड़ी मार आंध्रप्रदेश, छत्तीसगण, उडीसा, झारखंड, बिहार व उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में झेलनी पड़ रही है। सन् 2004 में माओवादी संगठन पीपुल्स वार ग्रुप और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया का गठन किया गया । नक्सलवादी आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुके हैं। रेल पटरियां उखाड़ना, सुरक्षा बलों पर हमला करना, बम विस्फोटक बनाना, बैंक लूट आदि में शामिल हैं।

अब तक हजारों की संख्या में ग्रामीण, सुरक्षा तंत्र के लोग तथा अन्य नक्सली हिंसा का शिकार हो चुके हैं। नक्सलवादी खुद को ग्रामीण का हितैषी मानते हैं। वे सोचते हैं कि सरकार सिर्फ अपना भला सोचती है उसे आम स्तर या ग्रामीण क्षेत्र विकास से कोई मतलब नहीं है इसलिए वह अपनी बात मनवाने के लिए ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं।

6 April 2010 को नक्सलियों ने C. R. P. F. के 75 जवानों को छत्तीसगण के दाँतेवाला जिले में अचानक से हमला करके सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। तथा दरभा झीरम घाट पर 11 March 2014 को हमला करके 15 जवानों को मार दिया था। तथा कोलकाता में रेल की पटरियां उखाड़ देने से ट्रेन नीचे उतर गई जिससे 150 से अधिक सैनिक मारे गए। अभी हाल में 2021 अप्रैल माह में नक्सलवादियों द्वारा सैनिकों पर अचानक से हमला किया गया तथा उनको मार दिया।

ग्रामीण क्षेत्रों में नक्सलवाद ने सामाजिक तनाव का रूप ले लिया है। समृद्ध भूमिपतियों का शहरों की ओर पलायन हो रहा है। इससे खेती चौपट हो रही है।जमीन पर अधिकार को लेकर जातीय संघर्ष भी बड़े हैं, साथ ही हिंसक संघर्ष देखने को मिल रहे हैं।

नक्सल वाद का निवारण –

नक्सलियों के बढ़ते प्रभाव और हिंसा को देखते हुए अब उनके खिलाफ कठोर कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।नक्सलवाद से निपटने के लिए सरकार सेना के इस्तेमाल करने पर विचार कर रही है।सैन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि नक्सल आपरेशन में सेना को सीधे शामिल किये बिना परोक्ष तौर पर ही मदद लेनी चाहिए। स्थानीय पुलिस बलों को प्रशिक्षण देने में सेना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

वायुसेना को भी नक्सलविरोधी आपरेशनों से सीमित भूमिका के लिए तैयार किया जा सकता है। जैसे – सुरक्षा बलों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना, नक्सल प्रभावित इलाकों के ऊंचाई से फोटो खींचना, दूरबीन से उनकी गतिविधियों पर नजर रखना जैसे अहम कार्य शामिल हैं।

निष्कर्ष ( Conclusion) –

सिर्फ पुलिस कार्यवाही से ही इस समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता, आज हमें इस सत्य को स्वीकार करना ही होगा कि नक्सलवाद अपने मूल में कानून और व्यवस्था की समस्या नहीं, बल्कि राजनैतिक और आर्थिक समस्या के साथ – साथ सामाजिक विकास और सांस्कृतिक समस्या भी है। इसका समाधान राजनीतिक तरीकों, आर्थिक – सामाजिक विकास और सांस्कृतिक समायोजन द्वारा ही हो सकता है।

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