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भारत की हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियाँ उद्गम स्थल | नदियों का धार्मिक महत्व , नदियों से होने वाले लाभ व नुकसान | list of Rivers in India – Rivers of India in India

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Rivers of India in India – list of Rivers in India

Hii दोस्तों स्वागत है आपका कैरियर जानकारी में। आज के टॉपिक में हम बात करेंगे नदी के बारे में।नदी पर निबंध हिंदी में (Essay on River in Hindi) कक्षा 3 से लेकर 8 तक छोटे-बड़े बदलावों के साथ पूछा जाता है। यह निबंध स्कूल और कॉलेज के छात्रों के लिए 2000 शब्दों मे लिखा गया है। इससे विद्यार्थी अपने परीक्षा मे लिखने के लिए मदद ले सकते हैं। और एक्जाम में अच्छे मार्क्स प्राप्त कर सकते हैं। तो आइये दोस्तों पढ़ते हैं इस पूरे ब्लॉग को।

Rivers of India in India

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नदी पानी का एक प्राकृतिक संसाधन है अर्थात नदियाँ प्रकृति का अभिन्न हिस्सा है, नदियों से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है, जीवन जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्रोत जल है, जो नदियों से ही प्राप्त होता है। ये हमें स्वच्छ जल उपलब्ध करवाती हैं। इन्हें सरिता, प्रवाहिनी आदि नामों से भी जाना जाता है। जिस स्थान पर नदियों का जन्म होता है उसे नदी का उद्गम कहते हैं और जहाँ पर नदी की धारा बहती है उसे नदी घाटी कहा जाता है। पहाड़ो पर जमी बर्फ पर सूर्य की किरणों के पड़ने से नदी उत्पन्न होती हैं। यह कभी झरनों के रूप में बहती है तो कभी नहरों और नदियों के रूप में। चट्टानों से टकराकर यह अपना रूख बदल लेती हैं।

नदियों का जल एक अमूल्य प्राकृतिक धरोहर है जो कि अनेक मानवीय क्रियाकलापों के लिए महत्वपूर्ण है l भारत एक ऐसा देश है जहाँ नदियों को माता का दर्जा दिया जाता है, भारत में नदियों को बहुत ही पवित्र माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है l जीवन और देश का आर्थिक या सांस्कृतिक का विकास करने के लिए भारत की सभी नदियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं | हमारा देश यह कृषिप्रधान देश हैं | इस कृषिप्रधान देश में नदियों का विशेष महत्व हैं | यह मानवजाति की जीवनदायिनी होती हैं | सभी नदियाँ मनुष्य को सहायता करती हैं | नदियों के द्वारा पूरी सजीव सृष्टी को जल प्राप्त हो जाता हैं | मनुष्य के द्वारा की जाने वाली खेती पूरी नदियों के जल के ऊपर निर्धारित होती हैं | हर एक नदी का विशेष महत्व होता हैं |

भारत की प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल :-

हिमालय की नदियाँ :-

इन नदियों का अपवाह क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है। इनमें साल भर जल की आपूर्ति होती रहती है क्योंकि इनमे वर्षा के अतिरिक्त बर्फ के पिघलने से भी जल आता रहता है। इसलिए इन नदियों को बारहमासी या सदानीरा भी कहा जाता है। हिमालयी नदियाँ अपने विकास क्रम में नवीन हैं और नवीन वलित पर्वतों के मध्य प्रवाहित होती हैं। वस्तुतः पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ समुद्र में मिलने से पहले काफी लंबी दूरी तय करती और नरम चट्टानी संरचना से बहती हुई, अपने साथ बड़ी मात्रा में गाद को प्रवाहित करती है। हिमालयी नदियों द्वारा अपवाहित यही गाद समुद्र में गिरने के पश्चात् चौड़ाई में विस्तार पाकर डेल्टा का स्वरूप धारण कर लेती है 

हिमालय की नदियों को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है  हिमालय पर प्रवाहित होने वाली तीन ऐसी नदियां हैं, जो हिमालय के उत्थान से पूर्व भी उस स्थान पर प्रवाहित होती थीं, ऐसी नदियों को पूर्ववर्ती नदियां कहते हैं|पूर्ववर्ती से आशय यह है कि ये तीनों नदियां हिमालय के उत्थान से भी पहले तिब्बत के मानसरोवर झील के पास से निकलती थीं और टेथिस सागर में अपना जल गिराती थीं|

सिंधु नदी :-

सिंधु नदी की लंबाई लगभग 2900 Km है। सिंधु नदी ( Indus River) का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है। पश्चिम की ओर बहती हुई यह नदी भारत में जम्मू कश्मीर के लद्दाख जिले से प्रवेश करती है। इस भाग में यह एक बहुत ही सुंदर दर्शनीय गार्ज का निर्माण करती है। इस क्षेत्र में बहुत-सी सहायक नदियाँ जैसे – जास्कर, नूबरा, श्योक, गिलगित, तोची , गोमल तथा हुंज़ा दरास इस नदी में मिलती हैं। सिंधु नदी बलूचिस्तान तथा गिलगित से बहते हुए अटक में पर्वतीय क्षेत्र से बाहर निकलती है।

सतलुज, ब्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम आपस में मिलकर पाकिस्तान में मिठानकोट के पास सिंधु नदी में मिल जाती हैं। इसके बाद यह नदी दक्षिण की तरफ बहती है तथा अंत में पाकिस्तान के कराची की ओर अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में सतलुज (तिब्बरत से निकलती है), व्यास, रावी, चिनाब, और झेलम है।

सिन्धु में बाए तट से आकर मिलने वाली नदियों का प्रमुख क्रम इस प्रकार है – झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलज।

सतलज नदी :-

इसकी उत्पति तिब्बत (Tibet) में होती है। सतलुज नदी मानसरोवर झील (Mansarovar Lake) के पास रक्ष्ताल से उत्पन होती है।
सतलुज नदी चिनाब नदी से मिलती है। दोनों नदियां मिलकर पंचनद का निर्माण करती है।ऋग्वेद (Rig veda)के नदीसूक्त में इसे शुतुद्रि कहा गया है।

इसकी कुल लम्बाई 1500 किलोमीटर है।, भारत मे इसकी लंबाई 1050 किलोमीटर है।सतलुज नदी मानसरोवर झील के पास रक्ष्ताल से उत्पन होती है। मानसरोवर झील , तिब्बत में केलाश पर्वत के दक्षिण में है। 400 कि. मी. बहने के बाद ये शिपकी (किन्नौर) से हिमाचल में प्रवेश करती है।

सतलुज का कुल जलग्रहण क्षेत्र 56860 कि॰मी॰ है।हरिके में ब्यास नदी सतलुज में मिलती है, जहां से यह दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़कर भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा निर्धारित करती है। इसके बाद यह भारत को छोडकर कुछ दूरी के लिए पाकिस्तान में फाजिल्का के पश्चिम में बहती है। बहावलपुर के निकट पश्चिम की ओर यह चनाब नदी से मिलती है। दोनों नदियां मिलकर पंचनद का निर्माण करती है।

सतलुज की सहायक नदियाँ :-

(1) ब्यास नदी
(2) बासपा नदी
(3) स्पीति  नदी
(4) नोगली नदी
(5) खड्ड नदी
(6) स्वां नदी

व्यास नदी :-

ब्यास नदी (Vyas river)हिमाचल में बहने वाली एक प्रमुख नदी है।ब्यास नदी का पुराना नाम ‘अर्जिकिया’ व ‘विपाशा’ था । इस नदी का उद्गम मध्य हिमाचल प्रदेश में, वृहद हिमालय की जासकर पर्वतमाला के रोहतांग दर्रे पर 4,361 मीटर की ऊंचाई से होता है।
उद्गम स्थान से यह कुल्लू घाटी (Kullu valley) से होते हुये दक्षिण की ओर बहती है। जहां पर सहायक नदियों को अपने में मिलाती है फिर यह पश्चिम की ओर बहती हुई मंडी नगर से होकर कांगड़ा घाटी में आ जाती है।घाटी पार करने के बाद ब्यास पंजाब (भारत) में प्रवेश करती है व दक्षिण दिशा में घूम जाती है और फिर दक्षिण-पश्चिम में यह 470 कि॰मी॰ बहाने के बाद आर्की में सतलुज नदी में जा मिलती है।

इस नदी की सहायक नदियांं सिप्ती, बासपा हैं। इस नदी केे किनारे बसे नगर बहावलपुर, लुधियाना, फिरोजपुर हैंं। इस नदी पर बने बॉध भाखडा-नॉगल बॉॉध, नाथपा झाकरी बॉध, और कोल बॉध हैंं। हिमांचल प्रदेश के भाखड़ा में सतलुज पर बांध बनाया गया है। बांध के पीछे एक विशाल जलाशय का निर्माण किया गया है, जो गोविंद सागर जलाशय कहलाता है।

ब्रह्मपुत्र नदी के बारे में जानें :-


ब्रह्मपुत्र नदी :-

ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत के मानसरोवर के निकट चेमायुंगडुंग हिमनद से होता है l अर्थात तिब्बत स्थित पवित्र मानसरोवर झील से निकलने वाली सांग्पो नदी पश्चिमी कैलाश पर्वत के ढाल से नीचे उतरती है तो ब्रह्मपुत्र कहलाती है। तिब्बत के मानसरोवर से निकलकर बाग्लांदेश में गंगा को अपने सीने से लगाकर एक नया नाम पद्मा फिर मेघना धारण कर सागर में समा जाने तक की 2906 किलोमीटर लंबी यात्रा करती है। ब्रह्मपुत्र भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे लंबी नदी है। यदि इसे देशों के आधार पर विभाजित करें तो तिब्बत में इसकी लंबाई सोलह सौ पच्चीस किलोमीटर है, भारत में नौ सौ अठारह किलोमीटर और बांग्लादेश में तीन सौ तिरसठ किलोमीटर लंबी है यानी बंगाल की खाड़ी में समाने के पहले यह करीब तीन हजार किलोमीटर का लंबा सफर तय कर चुकी होती है।

इस क्रम में अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मेघालय, भूटान, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के पहाड़ों से निकली अन्य अनेक नदियां इसमें समाहित हो जाती हैं। इस दौरान अनेक नदियां और उनकी उप-नदियां आकर इसमें समा जाती हैं। हर नदी की अपनी कहानी है और उनके किनारे बसी जनजातियों की अपनी संस्कृति है। 

ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ :-

यह नदी सियांग या डिहनग के नाम से तलहटी से उभर कर आती हैं। यह भारत में दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हुई अरुणाचल प्रदेश के सादिया शहर के पश्चिम से प्रवेश करती है। इसके मुख्य बाएं किनारे की सहायक नदियों दिबांग या सिकांग् , बुढी दिहांग, धनसिरी । जबकि दाएँ तट पर सहायक नदियों सुबनसिरी, कामेग, मानस और संकोश हैं।

बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र में तीस्ता आदि नदियां मिलकर अंत में गंगा में मिल जाती हैं। मेघना की मुख्यधारा बराक नदी का उद्भव मणिपुर की पहाडियों में होता है। इसकी मुख्य सहायक नदियां मक्कू, त्रांग, तुईवई, जिरी, सोनाई, रुकनी, काटाखल, धनेश्वरी, लंगाचीनी, मदुवा और जटिंगा हैं। बराक बांग्लादेश में तब तक बहती रहती है जब तक कि भैरव बाजार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी में इसका विलय नहीं हो जाता।

गंगा नदी :-

भारत में सबसे बड़ा नदी तंत्र गंगा नदी तंत्र है। गंगोत्री हिमनद उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है, जहां से भागीरथी नदी निकलती है और देवप्रयाग में अलकनंदा से मिल जाती है. इस संगम के बाद गंगा का निर्माण होता है. यहां से गंगा नदी बहती है और बंगाल की खाड़ी में शामिल हो जाती है. गंगोत्री हिन्दुओं का एक तीर्थ स्थान है. यहां गंगा जी को समर्पित एक मंदिर भी है. लंबाई के आधार पर गंगा का भारत में तीसरा स्थान है. भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा, जो भारत और बांग्लादेश में मिलाकर 2,510 किमी की दूरी तय करती हुई उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है, देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2,071 कि.मी तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। 100 फीट (31 मी) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है ।

गंगा पानी निर्वाहन के आधार पर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी नदी है और इसको सबसे पवित्र माना जाता है. भागीरथी नदी, गंगा नदी की एक महत्व.पूर्ण सहायक नदी है, जो गोमुख स्थान से 25 कि.मी. लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है. यह स्थान उत्तराखण्ड राज्य में उत्तरकाशी जिले में है. यह समुद्रतल से 618 मीटर की ऊँचाई पर, ऋषिकेश से 70 किमी दूरी पर स्थित हैं। गंगा हिमालय से यमुना, घाघरा, गंडक और कोसी नदियों जैसे कई नदियों से जुड़ती है. यमुना नदी यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है, लेकिन इलाहाबाद में गंगा नदी में शामिल हो जाती है. प्रायद्वीपीय उपनगरों से आने वाली मुख्य सहायक नदियां चंबल, बेतवा और सोन हैं। गंगा डेल्टा नदियों के तलछट समृद्ध प्रवाह द्वारा गंगा और ब्रह्मपुत्र दुनिया में सबसे बड़ा नदी डेल्टा है, जो 59,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।

उत्तर की ओर से गंगा में मिलने वाली नदियाँ :-

यमुना, रामगंगा, करनाली (घाघरा), ताप्ती, गंडक, कोसी।

दक्षिण की ओर से गंगा में मिलने वाली नदियाँ :-

चम्बल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोंस।

नदियों का धार्मिक महत्व :-

नदियां सदैव ही जीवनदायिनी रही हैं। प्रकृति का अभिन्न अंग हैं नदियाँ। नदियाँ अपने साथ बारिश का जल एकत्रित उसे भू-भाग में पहुचती हैं।हम नदियों को सिर्फ जल के स्रोतों के रूप में नहीं देखते। हम उन्हें जीवन देने वाले देवी देवताओं के रूप में देखते हैं।लगभग सभी नदियों को माँ के रूप में सम्मान दिया जाता है। इसी कारन इसे यह माना जाता है कि जहाँ एक और गंगा में नहाने भर से इंसान शुद्ध हो जाता है वहीं दूसरी ओर नर्मदा माता को देखने भर से इंसान शुद्ध हो जाता है। इसी तरह प्रत्येक नदी से कोई न कोई कथा जुड़ी हुई है। देश में नदियों के योगदान एवं महत्व का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वाराणसी आज विश्व का प्राचीनतम नगर एवं प्राचीनतम सभ्यता के रूप में जाना जाता है और वाराणसी गंगा के तट पर बसा हुआ है। आज वाराणसी विश्व में धार्मिक, शैक्षिक, पर्यटन, सांस्कृतिक एवं व्यापारिक नगर के रूप में जाना जाता है।

नदियों से लाभ :-

नदियों के जल से खेतो में  सिंचाई की जाती है।  नदियों के पानी को स्वच्छ करके उसे पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। नदियों में कई प्रकार के जीव निवास करते है | नदियों के बिना वह जीवित नहीं रह पाएंगे |नदियों के किनारे बसे कई गाँव के लोग नदियों  पर अपने आवश्यकताओ के लिए निर्भर है | नदियों के जल के माध्यम से बिजली उत्पादन  की जाती है | नदियों पर बाँध का निर्माण किया जाता है |इससे कई जगहों पर बिजली पहुंचाई जाती है |इसे हाइड्रोइलेक्ट्रिसिटी कहा जाता है | सारे  हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर स्टेशन नदियों पर निर्भर है |नदियों से लोगो को कई तरह के लाभ होते है।  कई लोग इससे मछली व्यापार करते है और यह एक रोजगार का साधन है।

नदियों से नुकसान :-

नदियाँ कभी कभी अपना रौद्र रूप धारण करती है और बाढ़ लेकर आती है।  बाढ़ एक भीषण प्राकृतिक आपदा है जिससे मनुष्यो और समस्त जीवो को नुकसान पहुँचता है।नदियों में बाढ़ के आने से केवल मनुष्य ही नहीं परन्तु पशु-पक्षी भी बहुत प्रभावित होते हैं, कई सारी बीमारियाँ भी जन्म लेतीं हैं, सभी जगह भयंकर माहौल बन जाता है। अनगिनत लोगों और अन्य पशु-पक्षी अपना निवास स्थान गवां देते हैं तथा बहुत से जीव अपनी जान भी गवां देते हैं। प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, भूस्खलन, आदि जहाँ भी आतें हैं उस जगह का अत्यधिक नुकसान करते हैं। नदियों के सबसे बड़ी हानि के रूप में  केदारनाथ की त्रासदी को ले सकते हैं जिसने हज़ारों लोगों को प्रभावित किया और आम जीवन को पटरी पर लाने के लिए समय, श्रम और धन का एक बड़ा भाग उपयोग करना पड़ा।

इस लेख नदी पर निबंध हिंदी में Essay on River in Hindi में आपने नदियों के बारें में सरल रूप से जाना। अगर यह निबंध आपको सरल व् सटीक लगा हो तो इसे शेयर जरुर करें।

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