” मां “
यह शब्द अपने आप में पूरा का पूरा संसार है । भगवान से भी पहले अगर किसी का नाम लिया जाता है, तो वह शब्द ‘ मां ‘ का आता है। ईश्वर ( भगवान ) भी मां के आगे कुछ नहीं है । अगर मां का आशीर्वाद मिल जाए तो मानो ईश्वर का आशीर्वाद मिल गया हो।
सभी को नमस्कार ! मेरा नाम ‘ राकेश कुमार ‘ है और यह मेरा पहला मेरे अपने जीवन पर आधारित ब्लाग है , इस ब्लॉग के माध्यम से मै अपना जीवन का वो अनमोल रिस्ता के बारे में बताना चाहता हूं जो हम सभी के पास है, पर इस चकाचौंध भरी जीवन में कहीं खो गया है । वह रिस्ता है मां का , जी हां दोस्तों मां ,
हर एक के जीवन में मां और संतान का संबंध बहुत ही प्यारा होता है। किसी का मां के साथ ‘ खट्टी- मिठी यादे तो किसी का खुशहाल यादें। लेकिन मेरा और मां का संबंध ना तो खट्टी- मिठी , और ना ही खुशहाल हैं। मेरी मां का अगर कोई फोटो देखता तो कहता , ये कभी फिल्म स्टार से कम नहीं दिखती थी । उस जमाने में भी जब मम्मी- पापा की शादी हुई थी , तो मम्मी पढ़ना चाहती थी , और मेरे प्यारे दादा जी ने उनका सपोर्ट किया किए और उन्हें आगे की पढ़ाई जारी रखने दिया । मेरी मां पढ़ने में बहुत तेज थी । जब फाइनल परीक्षा हुए तो वो घर के सभी लोगों को पीछे छोड़ कर सबसे ज्यादा माक्स लाईं । लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
जब वह दसवीं और बारहवीं कक्षा में अच्छे नंबर से पास कर गयी , तो दादा जी ने मां को पढ़ने के लिए शहर भेज दिए वहां वे बी. ए ऑनस कर रही थी , इसी बीच मेरे घर एक नई खुशी आइ एक नन्हा सा फैमिली मेंबर्स के रूप में , लेकिन ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था, यह खुशी हमसे एक महीने के अंदर ही छिन्न गई। इससे मेरे परिवार पर बहुत बुरा प्रभाव पडा , मानो सब कुछ तहेस नहेस हो गया। मां यह दुःख झेल नहीं पाई और वो मानसिक रूप से बिमार हों गई , उसके बाद वो अपनी पढ़ाई भी पुरी नहीं कर पाई। वह एक अच्छा प्रोफेसर बनना चाहती थीं। उन्हें इस बीमारी से उभरने में लगभग ३ वर्ष लग गए। जब वह ठीक होकर आई तब तक सब कुछ बदल चुका था , घर का माहौल वातावरण इत्यादि।
कुछ सालों तक सब कुछ ठीक चल रहा था, फिर दीदी का जन्म हुआ , मां ने बहुत अच्छे से देख रेख की और जो प्यार एक मां के तरफ से मिलना चाहिए वो सब दिया ।
फिर ४ सालो बाद मेरा जन्म हुआ। मेरे जन्म के कुछ महीनों बाद ‘ मां ‘ फिर से मानसिक रूप से बिमार हों गई और इस कारण से उन्हें हम दोनों को छोड़कर इलाज के लिए शहर जाना पड़ा। पापा ने हम दोनों को दादा दादी के पास छोड़कर इलाज के लिए चले गए। फिर हमारा परवरिश दादा दादी जी ने ही किए। दादी जी से हमें मां का प्यार मिला । इसलिए जब मैं बोलना प्रारंभ किया तो दादी को दादी नहीं कहा , मां कह दिया , इस लिए अगर मेरी कोई दुसरी मां है तो वो दादी ‘ मां ‘ हैं।
फिर ४ -५ सालो बाद जब मां घर आई तो , सब लोग खुश थे पर मैं डरा हुआ था। मै उनके पास नहीं जा रहा था। फिर दादी जी ने कहा फिर मैं पहली बार मां को सही तरीके से देखा और प्रणाम किया। मुझे अभी भी याद है मैं अपनी मां को पहली बार मां तब कहां था , जब मैं 7 साल का हो गया था तब ।
मां के साथ अगर सबसे ज्यादा यादगार पल याद करना हो, तो वो है जब मैं 8 वीं कक्षा में था और मुझे 15 अगस्त के दिन अंग्रेजी में भाषण देना था , पर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले , उस समय मेरी मां ने मुझे सारा भाषण बोल बोल कर याद करवाया। और भी बहुत सारे बच्चन की यादें जुड़ी हुईं है, मेरे हर जन्म दिन पर के केक बनाती थी और हम सभी को पार्टियां देती थी। वह मुझ से बहुत प्यार करती थी इतना की मै बता नहीं सकता। शब्दों में इसे बयां नहीं कर पा रहा, आखिर ये मां का प्यार होता ही अनोखा हैं। बस अफसोस इस बात का है कि शायद वो जितना करती मैं नहीं कर पाया । लेकिन मैं अपने तरफ़ से पुरा कोशिश करता हूं कि जो प्यार मैं बचपन में मां को नहीं दे पाया वो दु ।
मेरा मानना है कि हम सभी को मां को समय देना चाहिए , ताकि उन्हें भी अच्छा लगे। मां को बस मातॄ दिवस पर ही नहीं हमेशा याद करे। और हो सके तो ज्यादा से ज्यादा समय साथ बिताए।
मै तो खुशनसीब हूं कि मां है नहीं तो उन लोगो से पुछो जिनकी मां नहीं है। आप जितने भी लोग ये ब्लॉग पढ़ रहे हैं , वो कॄपया अपने माता-पिता से जरुर प्यार करे। इन ढलती उम्र में उन्हें अपनों का साथ बहुत जरूरी है। जितना से जितना हो सके उतना प्यार उन्हें दे। उनके हर जरूरत को पूरा करे , जोसा कि वो बचपन में हमारा करते थे।
किसी ने क्या खूब कहा है :-
“खुदा का दुसरा रुप है मां। ममता की गहरी झील है मां। वो घर किसी जन्नत से कम नहीं। जिस घर में खुदा कि तरह पूजी जाती है मां “
Story By :- Rakesh Kumar. ( real story besed on his life all about reality )
Written by :- admin careerjankari.in