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Essay on Martyrs Day 2021 explain in Hindi
Hii friends स्वागत है आपका करियर जानकारी में। दोस्तों आज हम आपको इस लेख के जरिये बताने वाले हैं 23 March शहीद दिवस Shaheed Diwas के बारे में। यह जानकारी आपके परीक्षा की दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। दोस्तों यदि आप अपनी परीक्षा में अच्छे अंक लाना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को पूरा पढ़िये।
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Essay on Martyrs Day in Hindi
शहीद दिवस प्रत्येक वर्ष 23 March को मनाया जाता है। शहीद दिवस भारत के तीन असाधारण युवा क्रांतिकारियों को याद करके मनाया जाता है। भारत देश की स्वतंत्रता के लिए इन शहीदों ने खुशी खुशी स्वयं को फांसी पर चढ़ना स्वीकार किया। भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव जिन्हें ब्रिटिश यानि अंग्रेजों द्वारा 23 March 1931 को फांसी पर लटका दिया था। यह एक वार्षिक दिन है जो शहीद हुए सैनिक(sainik) को सलामी देने (salute)के लिए मनाया जाता हैं जिन सैनिकों ने बिना अपनी और अपने घर वालों की परवाह किए वगैरह देश की रक्षा के लिए अपनी जान गवा दी।सपूतों ने देश को गुलामी की जंजीरों से निकाल कर आजादी की खुली सांस देने के लिए स्वयं अपना जीवन भारत देश के लिए न्यौछावर कर दिया।
शहीद दिवस , स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान के बारे में लोगों को जागरूकता पैदा करने का अवसर देता है। अत: यह दिवस हमें अपने देश से प्रेम करना सिखाता है। तथा जाति, भेदभाव, धर्म, नस्ल आदि को पीछे छोड़कर पूरे देशवासियों को एक सूत्र में पिरोता है। इस दिन को भारत के इतिहास में Black Day के रूप में मनाया जाता है।
Shaheed Diwas kab Manaya Jata Hai
शहीद दिवस ( Shaheed Diwas ) प्रत्येक वर्ष 23 March को मनाया जाता है।
जानें भगत सिंह के बारे में :-
शहीद भगत सिंह का नाम उन अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है। भगत सिंह का जन्म 28 September 1907 को पंजाब प्रांत के बंगा गाँव के लायलपुर जिले में सिक्ख परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम किशन सिंह तथा माता का नाम विद्यावती कौर था।
भगत सिंह जब 12 yrs के थे तब उनके सामने जलियावाला बाग हत्याकांड की घटना घटी, जिसने भगत सिंह का हृदय सदैव के लिए परिवर्तित कर दिया। उसके कुछ समय बाद उन्होंने पढाई लिखाई छोड़ कर भारत की स्वतंत्रता के लिए नौजवान भारत सभा का आयोजन किया। यह सभा धर्मनिरपेक्ष संस्था थी तथा इसके प्रत्येक सदस्य को सौगन्ध लेनी पड़ती थी कि वह देश के हितों को अपनी जाति तथा अपने धर्म के हितों से बढक़र मानेगा. लेकिन मई 1930 में इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया । इन्होंने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के सामने डट कर सामना किया और हँसते हँसते वीरगति को प्राप्त हुए। अंग्रेजों ने भगतसिंह को तो खत्म कर दिया पर वह भगत सिंह के विचारों को खत्म नहीं कर पाए जिसने देश की आजादी की नींव रख दी. आज भी देश में भगतसिंह क्रांति की पहचान हैं।
जलियावाला बाग व साइमन कमीशन से भगत सिंह पर पड़ने वाला प्रभाव:-
भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। लाला लाजपतराय भगतसिंह के आदर्श पुरुषों में से एक थे इसलिए उन्होंने उनकी मृत्यु का बदला लेने की ठान ली। लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेने के लिए ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ ने भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, आज़ाद और जयगोपाल को यह कार्य दिया. क्रांतिकारियों ने साण्डर्स को मारकर लालाजी की मौत का बदला लिया. साण्डर्स की हत्या ने भगतसिंह को पूरे देश में एक क्रांतिकारी की पहचान दिला दी। इन सब वजहों से अंग्रेजी हुकूमत में हाहाकार मच गई। अंग्रेजी सरकार किसी भी कीमत पर भगत सिंह को पकड़ना चाहती थी। इसलिए भगत सिंह को कई बार अलग अलग वेश में लडाई लड़नी पड़ी। और उन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिये।
भगत सिंह को अंग्रेजों की कूटनीति रणनीति पसंद नही थी। भगत सिंह मूलत: समाजवाद के सिद्धांतों से प्रभावित थे। अंग्रेजों द्वारा भारत में हो रहे अत्याचार जैसे जबरदस्ती मजदूरी, जबरदस्ती लगान तथा सबसे मुख्य बात भारतियों के लिए लाये गए भारतियों के अहित में कुछ नियम जिससे भगत सिंह बहुत क्षुब्ध थे। ऐसी नीतियों के पारित होने के खिलाफ़ विरोध प्रकट करने लिए क्रांतिकारियों ने लाहौर की केन्द्रीय एसेम्बली में बम फेंकने की सोची। भगत सिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून खराबा ना हो तथा अंग्रेजो तक उनकी ‘आवाज़‘ पहुंचे। अंग्रेजों के बढ़ते हुए अत्याचार से सबसे पहले भगत सिंह ने लौहार में सांडर्स की गोली मार कर हत्या कर दी। उसके बाद ‘पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूट बिल’ के विरोध में भगत सिंह ने सेंट्रल असेम्बली में बम फेंका था। हालांकि, उनका मकसद सिर्फ अंग्रेजों तक अपनी आवाज पहुंचाना था कि किसी की हत्या करना नहीं। इस घटना के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।
तथा उन पर लाहौर सडयंत्र केस पर मुकदमा चलाया गया। करीब 2 साल जेल प्रवास के दौरान भी भगतसिंह क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़े रहे और लेखन व अध्ययन भी जारी रखा। भगत सिंह एक अच्छे लेखक, प्रवक्ता आऔर पाठक थे। जब उनको फांसी होने वाली थी तब वह लेनिन की किताब पढ़ रहे थे। लाहौर सडयंत्र मे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई तथा बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। तथा तीनों वीर सपूत वीरगति को प्राप्त हुए।
भगत सिंह के नारे :-
(1) इंकलाब जिंदाबाद !
(2) व्यक्तियों को कुचल कर वह उनके विचारों को नहीं मार सकते !
(3) राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी रह कर आजाद है।
(4) निष्ठुर आलोचना व स्वतंत्र विचार ये क्रांति कारी सोच के अहम लक्षण हैं।
(5) साम्राज्यवाद का नाश हो!
(6) क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह जरूरी नहीं । यह बम और पिस्तौल की राह नहीं है।
(7) कोई भी व्यक्ति तब ही कुछ करता है जब वह अपने कार्य के परिणाम को लेकर आश्व्स्त (औचित्य) होता है जैसे हम असेम्बली में बम फेकने पर थे।
(8) क्रांति मनुष्य का जन्म सिद्ध आधिकार है साथ ही आजादी भी जन्म सिद्ध अधिकार है और परिश्रम समाज का वास्तव में वहन करता है।
(9) कानून की पवित्रता केवल तब तक बनी रह सकती है जब तक यह लोगो की अभिव्यक्ति हो।
(10) मुझे खुद को बचाने की कोई इच्छा नहीं थी, और मैंने कभी इसके बारे में गंभीरता से नहीं सोचा।
(11) जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती हैं, दुसरो के कंधो पर तो सिर्फ जनाजे उठा करते हैं।
(12) मैं खुशी से फांसी पर चढ़ूंगा और दुनिया को दिखाऊंगा कि कैसे क्रांतिकारी देशभक्ति के लिए खुद को बलिदान दे सकते हैं।
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