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हिमालय पर्वत के बारे में जानें। हिमालय पर्वत का विस्तार – हिमालय पर्वत का निर्माण, प्रमुख चोटियों के बारे में – Himalaya parvat ke bare mein Bataiye

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हिमालय पर्वत के बारे में – Himalaya parvat ke bare mein Bataiye

हिमालय’ संस्कृत के ‘हिम’ तथा ‘आलय’ दो शब्दों से मिलकर बना है , जिसका शाब्दिक अर्थ ‘बर्फ का घर’ होता है। हिमालय को भारत का ताज कहा जाता है। हिमालय से ही हिन्दू धर्म है। ‘हिन्दू’ शब्द की उत्पत्ति का मूल भी हिमालय ही है। वैसे तो हिमालय में हजारों रहस्य छिपे हुए हैं ।

Himalaya parvat ke bare mein Bataiye

Which state is known as mountain State in India explain in Hindi

Hlow दोस्तों स्वागत है आपका कैरियर जानकारी में। दोस्तों आज बात करने वाले है एक नये टॉपिक की जिसका नाम है।हिमालय पर्वत श्रृंखला। हिमालय पर्वत श्रृंखला की पूरी जानकारी के लिए हमारे लेख को अंत तक जरूर पढ़िये।

हिमालय की उत्पत्ति :-

भारत की उत्तरी सीमा पर विस्तृत हिमालय पर्वत भूगर्भिक रूप से युवा या नवीन एवं बनावट के दृष्टिकोण से वलित तथा विश्व की नवीनतम मोड़दार पर्वत श्रृंखला है। हिमालय की उत्पति भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव से हुई है। हिमालय का निर्माण एक लम्बे भूगर्भिक ऐतिहासिक काल के दौरान संपन्न हुआ है। इसक निर्माण के संबंध में कोबर का भूसनति का सिद्धांत एवं अमेरिकी भूवैज्ञानिक हैरी हैस का प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत सर्वाधिक मान्य है। कोबर ने भूसंन्नाति को पर्वतों का पालना कहते हैं। ये लम्बे, संकरे व छिछले भाग हैं।

कोबर के भूसनति सिद्धांत के अनुसार, आज से 7 करोड वर्ष पहले हिमालय के स्थान पर टेथिस भूसनति थी जो उत्तर के अंगारालैंड भूभाग को दक्षिण के गोंडवाना लैंड से पृथक करती थी। इन दोनों के अवसाद टेथिस भू सनति अर्थात सागर में जमा होते रहे एवं इन अवसादों का क्रमश: अवतलन होता रहा। इसक परिणामस्वरूप दोनों संलग्न अग्र भूमियों में दबाव जनित भूसंचालन उत्पन्न हुआ जिनसे क्युनलुन, एवं हिमालय काराकोरम श्रेणियों का निर्माण हुआ।

हिमालय की सभी श्रृंखलाओं का निर्माण अल्पाइन भूसंचलन के तहत टर्शियरी युग में टेथिस सागर में अवसादों के जमाव के परिणाम स्वरूप हुआ है। अत: हम टेथिस सागर को हिमालय का गर्भ या जन्म स्थल भी कह सकते हैं।

हिमालय वास्तव में अभी एक युवा पर्वत है, जिसका निर्माण कार्य अभी समाप्त नही हुआ है।हिमालय के क्षेत्र में आने वाले भूकंप, हिमालयी नदियों के निरंतर परिवर्तित होते मार्ग एवं पीरपंजाल श्रेणी में 1500 – 1850 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाले झीलीय निक्षेप करेवा हिमालय के उत्थान के अभी भी जारी रहने की ओर संकेत हैं । भारत की उत्तरी सीमा पर विश्व की सबसे ऊँची एवं पूर्व पश्चिम में विस्तृत सबसे बड़ी पर्वतमाला है। इस पर्वत श्रेणी के पश्चिमी भाग में नंगा पर्वत के निकट एवं पूर्वी भाग में मिश्मी पहाडी या नामचा बरवा के निकट दो तीखे अक्षसंघीय मोड़ हैं। ये मोड़ प्रायद्वीपीय पठारी भाग के उत्तरी पूर्वी दबाव के कारण निर्मित हुए हैं।

वलयों की तीव्रता तथा निर्माण आयु के आधार पर हिमालय का वर्गीकरण

(1) ट्रांस हिमालय

(2) वृहद हिमालय

(3) लघु हिमालय या मध्य हिमालय

(4) बाह्य या उप हिमालय या शिवालिक हिमालय

ट्रांस हिमालय या तिब्बत हिमालय श्रेणी ( Trans Himalaya)

ट्रांस हिमालय श्रेणी महान हिमालय का उत्तरी भाग है। इस श्रेणी का निर्माण अवसादी शैलों से हुआ है, जहाँ तृतीयक युग से लेकर कैंब्रियन युग तक की शैलें पाई जाती हैं। यह श्रेणी सतलज, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सांगपो जैसी पूर्ववर्ती नदियों को जन्म देती हैं। यह उत्तर में ट्रांस हिमालय से इंडो सांगपो शचर जोन या हिन्ज लाइन के द्वारा अलग होती है। इसक अंतर्गत काराकोरम, लद्याख्, जास्कर और कैलाश पर्वत श्रेणियाँ शामिल हैं। काराकोरम श्रेणी को एशिया की रीढ़ कहा जाता है। इसी श्रेणी में भारत की सर्वोच्च पर्वत चोटी K2 गार्डविन आस्टविन (8648 me) स्थित है। गार्डविन अस्टिन पर्वत को गौरी नंदा पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। काराकोरम श्रेणी पश्चिम में पामीर की गांठ से मिल जाती है। जबकि दक्षिण पूर्व में कैलाश श्रेणी के रूप में विस्तृत है। इस श्रेणी के दक्षिण मे लद्दाख श्रेणी सिंधु नदी तथा इसकी सहायक श्योक् नदी के मध्य विभाजक का काम करती है।

वृहद हिमालय या हिमाद्रि हिमालय

माउंट एवरेस्ट की सर्वाधिक सतत व ऊंची श्रृंखला है। इसमें 6100 मीटर की औसत ऊंचाई वाले सर्वाधिक ऊँचे शिखर पाए जाते हैं। इसमें हिमालय के सभी मुख्य शिखर हैं। हिमालय के वलय की प्रकति असमित है। जो मुख्यत: रवेदार आग्नेय अथवा कायन्तरित शिलाओं से निर्मित है। यह श्रृंखला सदैव बर्फ से ढकी रहती है। इसमें बहुत सी हिमानियों का प्रवाह होता है। वृहद हिमालय सिंधु नदी के गार्ज से अरुणांचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक फैली है। विश्व के प्राय: सभी सर्वोच्च शिखर इसी श्रेणी में स्थित है। इनमें एवरेस्ट (8848me), कंचनजंघा (8598me) , नंगा पर्वत , नंदा देवी, कामेत व नामचा बरवा आदि इसक महत्वपूर्ण शिखर हैं। माउंट एवरेस्ट को नेपाल में सागरमाथा के नाम से जानते हैं।

निम्न हिमालय या लघु हिमालय या मध्य हिमालय

वृहद हिमालय , लघु हिमालय से मेन सेंट्रल thrust द्वारा अलग होता है।यह महान हिमालय के दक्षिण में लगभग उसके समांतर पूर्व पश्चिम दिशा में विस्तृत है।इसकी चौडाई 60-80 k. M. और ऊंचाई 3000 – 4500 me है। यह हिमालय की सबसे कटी छटी श्रृंखला है।इन श्रृंखलाओं का निर्माण मुख्यत: अत्यधिक संपीड़न तथा परिवर्तित शैलों से हुआ है यहाँ की कुछ चोटियां 5,000 me से भी ऊंची होती हैं।तथा नदियाँ 1000 me गहरे गार्ज बनाती हैं। शीत ऋतु में इस क्षेत्र में तीन से चार महीनों तक बर्फ गिरती है। तथा ग्रीष्म ऋतु में यहाँ का मौसम शीतल और स्वास्थवर्धक होता है। पीरपंजाल,धौलाधर्, नागटिब्बा,एवं महाभारत इस भाग की प्रमुख पर्वत श्रेणियाँ हैं।

कश्मीर में स्थित पीरपंजाल श्रृंखला हिमालय की सबसे लंबी एवं सबसे महत्वपूर्ण श्रृंखला है। पीरपंजाल श्रेणी में स्थित दो प्रमुख दर्रे बुर्जिला व बर्निहाल दर्रा है।जम्मू कश्मीर मार्ग जवाहर सुरंग से होकर गुजरता है। इसी श्रृंखला में कश्मीर की घाटी तथा हिमांचल प्रदेश के लाहौल, सफीति, कांगडा घाटी एवं कुल्लू की घाटी स्थित है। साथ ही इस क्षेत्र को पहाडी नगरों के लिए जाना जाता है।

शिवालिक या उप हिमालय

हिमालय की सबसे बाहरी एवं दक्षिणी श्रृंखला को शिवालिक हिमालय कहा जाता है।जो हिमालय की सबसे नवीन पर्वत श्रेणी है।इसकी चौडाई 10-50 k. M. तथा Height 600- 1200 me है। ये श्रंृखलाऐं उत्तर में स्थित हिमालय की श्रंखलाओं से नदियों द्वारा लाये गए असंपीडि़त अवसादों से बनी है, जिसकी घाटियों बजरी तथा जलोढ़ की मोटी परत से ढकी हुई है।हिमालय का पर्वतीय प्रदेश इस श्रेणी के दक्षिण भाग में स्थित है।।निम्न हिमालय के दक्षिणी भाग तथा शिवालिक श्रेणी की उत्तरी ढाल के मध्य में अनेक चौरस तल वाली संरचनात्मक लंबवत घाटियाँ तथा कोणधारी वन एवं छोटे छोटे घास के मैदान पाए जाते हैं। जिन्हें पश्चिम में दून के नाम सेतथा पूर्व में द्वार उ, उत्तराखंड में बुग्याल या पयार के नाम से जानते हैं।

खेतों की अच्छी संभावना के कारण इन घाटियों के समीप लोगों का सघन बसाव है। सघन हिमालय के निचले भाग को तराई कहते हैं।यह दलदली और वनाच्चादित् प्रदेश हैं।

कश्मीर हिमालय

सतलज एवं सिंधु के बीच स्थित हिमालय के भाग को कश्मीर या पंजाब हिमालय के नाम से जानते हैं। जो 560 k. M. की लंबाई में विस्तृत है। यहाँ हिमालय क्रमिक रूप से ऊंचाई प्राप्त करता है।हिमालय की चौडाई यहाँ सर्वाधिक है।यह कश्मीर व हिमांचल प्रदेश राज्यों में फैला है। इसक अंतर्गत जास्कर्, लद्दाख, काराकोरम, पीरपंजाल, धौलाधर श्रेणी सम्मलित है। शिमला धौलाधर श्रेणी में स्थित है। मीठे पानी की झीलें जैसे डल और बुलर तथा खारे पानी की झीले पंगोंग त्सो और त्सो मोरारी झीलें भी इसी क्षेत्र में स्थित हैं। यहाँ जाफ़रान की खेती की जाती है।

कुमायूँ हिमालय

यह सतलज नदी तथा काली नदी के मध्य 320 k. M. लंबा क्षेत्र है। यह उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है।इसकी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी (7,812 me) है।इसक पश्चिमी भाग को गढ़वाल हिमालय एवं पूर्वी भाग को कुमायूँ हिमालय के नाम से जाना जाता है। कुमायूँ हिमालय पंजाब हिमालय की अपेक्षा अधिक ऊंचा है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, त्रिशूल, माना, गंगोत्री, नंदा देवी, कामेत आदि यहाँ की प्रमुख चोटियाँ हैं। गंगा और यमुना नदियों का उद्गम स्थान क्रमश: गंगोत्री और यमुनोत्री यहीं स्थित है। इसी क्षेत्र में नैनीताल भूमिताल तथा सातताल झीलें स्थित हैं। मानातथा नीति दर्रा भी इसी क्षेत्र में स्थित है।

नेपाल हिमालय

यह काली नदी तथा तीस्ता नदी के मध्य 800 k. M. की लंबाई में स्थित है।जो कुमाऊँ हिमालय की अपेक्षा अधिक ऊंचा है यहां हिमालय की चौडाई अत्यंत कम है। इनका क्षेत्रफल लगभग 1,16800 square k. M. है।इस श्रेणी को सिक्किम में सिक्किम हिमालय तथा भूटान में भूटान हिमालय तथा पश्चिम बंगाल मे दर्जलिंग हिमालय कहते हैं। इसकी औसत ऊँचाई 6,250 k. M. है। इस भाग में भारत की सबसे ऊँची चोटियाँ अन्नपूर्णा, धौलागिरी, गोसाइथान, कंचनगंगा,चोयु, मकालू और एवरेस्ट स्थित हैं।

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